महामृत्युंजय जाप ने मार्कण्डेय ऋषि को अमर बना दिया
महामृत्युंजय अनुष्ठान भारतीय तंत्र और हिंदू धार्मिक परंपरा का एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जिसका उद्देश्य मृत्यु के भय से मुक्ति और लंबी उम्र की प्राप्ति होता है। यह अनुष्ठान महामृत्युंजय मंत्र के जाप पर आधारित होता है, जिसे विशेष रूप से मृत्यु और बीमारियों से रक्षा के लिए शक्तिशाली माना जाता है। मंत्र: महामृत्युंजय अनुष्ठान का आधार महामृत्युंजय मंत्र है, जिसे त्रेतायुग के एक अत्यंत महत्वपूर्ण मंत्र के रूप में माना जाता है। यह मंत्र भगवान शिव को समर्पित होता है और यह खासकर मृत्यु और भय के निवारण के लिए उपयोग किया जाता है।
महामृत्युंजय अनुष्ठान से जुड़ी मार्कण्डेय ऋषि की कथा भारतीय पौराणिक कथाओं में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। मार्कण्डेय ऋषि की कथा इस अनुष्ठान के महत्व और इसके प्रभाव को स्पष्ट करती है। मार्कण्डेय ऋषि एक महान तपस्वी और विद्वान थे। उनके बारे में कहा जाता है कि वे भगवान शिव के परम भक्त थे और भगवान शिव ने उन्हें अमरता का आशीर्वाद दिया था। मार्कण्डेय ऋषि की कथा में एक महत्वपूर्ण भूमिका है, जिसमें उनकी तपस्या और शिवभक्ति के कारण उन्हें अमरता प्राप्त हुई।
मार्कण्डेय ऋषि की कथा बताती है कि जब वे बाल्यकाल में थे, तब उन्होंने महान तपस्या की और भगवान शिव की पूजा की। भगवान शिव ने उनकी तपस्या से प्रभावित होकर उन्हें अमरता का आशीर्वाद दिया। इस प्रकार, जब उनके जीवन की समाप्ति का समय आया, तो भगवान शिव ने उन्हें अमरता का आशीर्वाद प्रदान किया और मृत्यु के भय से मुक्ति दिलाई। इसी कथा से जुड़ा है महामृत्युंजय मंत्र, जिसे मार्कण्डेय ऋषि की कृपा और शिवभक्ति से जोड़कर देखा जाता है। मान्यता है कि जब मार्कण्डेय ऋषि ने महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया, तो उन्होंने मृत्यु के भय से मुक्ति प्राप्त की और अमरता को प्राप्त किया।
मार्कण्डेय ऋषि की कथा इस बात को स्पष्ट करती है कि महामृत्युंजय मंत्र की शक्ति कितनी महत्वपूर्ण है। यह मंत्र मृत्यु और बुराई से रक्षा के लिए अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है। इसका जाप और अनुष्ठान व्यक्ति को जीवन में सुरक्षा, शांति, और अमरता का आश्वासन देते हैं। मार्कण्डेय ऋषि की कथा को ध्यान में रखते हुए, महामृत्युंजय अनुष्ठान करते समय इस मंत्र का जाप विशेष महत्व रखता है। साधक इस मंत्र का जाप करते हैं और भगवान शिव की पूजा करते हैं, जिससे वे मृत्यु के भय और रोगों से मुक्ति प्राप्त कर सकें।
इस प्रकार, मार्कण्डेय ऋषि की कथा महामृत्युंजय अनुष्ठान की धार्मिक और आध्यात्मिक महत्वता को दर्शाती है। यह कथा बताती है कि श्रद्धा, तपस्या, और भक्ति के माध्यम से व्यक्ति जीवन की कठिनाइयों और मृत्यु के भय से मुक्त हो सकता है।
वैसे तो मार्कण्डेय ऋषि की मूल तपोस्थली जहां भगवान् शिव ने उन्हें काल के हाथ बचाकर अमर होने का आशीर्वाद प्रदान किया था के बारे में कई स्थानों का उल्लेख मिलता है लेकिन उत्तर प्रदेश के वाराणसी जनपद में कैथी ग्राम स्थित गोमती और गंगा का मनोरम संगम स्थल मार्कण्डेय ऋषि की तपोस्थली के रूप में प्रसिद्ध है। जहां श्रावण मास के सोमवार के दिन 6 से 7 लाख श्रद्धालु काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग का दर्शन करते हैं वहीं सावन के प्रत्येक सोमवार को मार्कण्डेय महादेव कैथी में भी 4 से 5 लाख श्रद्धालु दर्शन करते हैं ।
महामृत्युंजय अनुष्ठान के लाभ : इस अनुष्ठान को करने से कई लाभ माने जाते हैं –
मृत्यु का भय कम करना: यह अनुष्ठान मृत्यु के भय को कम करने और आत्मिक शांति प्राप्त करने में मदद करता है।
स्वास्थ्य और लंबी उम्र: यह स्वास्थ्य को बढ़ाने और जीवन की लंबाई को बढ़ाने में सहायक माना जाता है।
सामान्य कल्याण: मानसिक और आत्मिक कल्याण प्राप्त करने के लिए भी इस अनुष्ठान को किया जाता है।
महामृत्युंजय अनुष्ठान एक गहन और परंपरागत धार्मिक क्रिया है, जिसे सावधानी और श्रद्धा के साथ किया जाना चाहिए। इसके लिए एक अनुभवी और योग्य पुजारी की सहायता लेना हमेशा बेहतर होता है। अन्यथा पुरोहितों या जजमान द्वारा किसी भी प्रकार की त्रुटि से उद्देश्य के विपरीत प्रभाव पड़ सकता है।
ब्लॉगर के बारे में
यह ब्लॉग हरिताभ सिंह द्वारा विशेषतः काशीपुरम के लिए लिखा गया है। हरिताभ सिंह ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कला में स्नातक करने के बाद महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ विश्वविद्यालय से औद्योगिक सम्बन्ध एवं कार्मिक प्रबंध से परास्नातक किया तत्पश्चात वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में परास्नातक किया और दूरस्थ मोड से दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा मद्रास से प्रबंधन में भी परास्नातक (MBA) किया। ब्लॉगर छात्र जीवन से ही अलग – अलग विषयों पर लिखने के शौक़ीन थे और कवितायें भी लिखते थे । उचित मंच और मार्गदर्शन के अभाव में इनकी दिशा और दशा ने दूसरा मोड़ ले लिया, लेकिन इनकी क्रियाशीलता और लेखनी ने इनका साथ नहीं छोड़ा। आखिरकार काशीपुरम के रूप में इन्हें एक ऐसा मंच मिला जहां बिना किसी रोक – टोक और भेद – भाव के अपनी लेखनी के माध्यम से ये अपना विचार व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र हैं।