माँ मुण्डेश्वरी भवानी
यह मंदिर पंवरा पहाड़ी के शिखर पर स्थित है I जिसकी ऊँचाई लगभग 600 फीट है Iवर्ष 1812 ई0 से लेकर 1904 ई0 के बीच ब्रिटिश यात्री आर.एन.मार्टिन, फ्रांसिस बुकानन और ब्लाक ने इस मंदिर का भ्रमण किया था Iपुरातत्वविदों के अनुसार यहाँ से प्राप्त शिलालेख 389 ई0 के बीच का है जो इसकी पुरानता को दर्शाता है I मुण्डेश्वरी भवानीके मंदिर के नक्काशी और मूर्तियों उतरगुप्तकालीन है I यह पत्थर से बना हुआ अष्टकोणीय मंदिर है I इस मंदिर के पूर्वी खंड में देवी मुण्डेश्वरी की पत्थर से भव्य व प्राचीन मूर्ति मुख्य आकर्षण का केंद्र है I माँ वाराही रूप में विराजमान है, जिनका वाहन महिष है I मंदिर में प्रवेश के चार द्वार हैं जिसमे एक को बंद कर दिया गया है और एक अर्ध्द्वर है I इस मंदिर के मध्य भाग में पंचमुखी शिवलिंग स्थापित है I जिस पत्थर से यह पंचमुखी शिवलिंग निर्मित किया गया है उसमे सूर्य की स्थिति के साथ साथ पत्थर का रंग भी बदलता रहता है I मुख्य मंदिर के पश्चिम में पूर्वाभिमुख विशाल नंदी की मूर्ति है, जो आज भी अक्षुण्ण है I यहाँ पशु बलि में बकरा तो चढ़ाया जाता है परंतु उसका वध नहीं किया जाता है I बलि की यह सात्विक परंपरा पुरे भारतवर्ष में अन्यत्र कहीं नहीं है I एक तरफ मंदिर तक पहुँचने के लिए 524 फीट तक सड़क मार्ग की सुविधा है जहाँ हल्की गाड़ियाँ जा सकती है I
आश्चर्यजनक बात यह है कि यहां बिना रक्त बहाए ही बकरे की बलि चढ़ जाती है. इसके साथ यह भी कि आप माता की मूर्ति पर अधिक देर तक अपनी दृष्टि टिकाए नहीं रख सकते हैं. इसी मंदिर परिसर में एक पंचमुखी शिवलिंग भी है जो दिन के तीन पहर अपना रंग बदल लेता है। पहाड़ी पर बिखरे हुए कई पत्थर और स्तंभ हैं जिनको देखकर लगता है कि उन पर श्री यंत्र सिद्ध यंत्र मंत्र उत्कीर्ण हैं। जैसे ही आप मंदिर के मुख्य द्वार पर ही पहुंचेंगे वातावरण पूरी तरह से भक्तिमय लगने लगता है। सीढ़ियों के सहारे मंदिर के दरवाजे पर पहुंचने के साथ ही पंवरा पहाड़ी के शिखर पर स्थित मां मुंडेश्वरी भवानी मंदिर की नक्काशी अपने आप में मंदिर की अलग पहचान दिलाती है। मंदिर कितनी प्राचीन है और मंदिर में रखी मूर्ति कब और किस तरह के पत्थर से बनी है, ये सब बातें मंदिर में प्रवेश करने के पहले एक शिलालेख में अंकित है। इसपर साफ-साफ लिखा है की मंदिर में रखी मूर्तियां उत्तर गुप्त कालीन हैं और यह पत्थर से बना हुआ अष्टकोणीय मंदिर है।
मान्यता के अनुसार इस इलाके में चंड और मुंड नाम के असुर रहते थे, जो लोगों को प्रताड़ित करते थे। जिनकी पुकार सुन माता भवानी पृथ्वी पर आईं थीं और इनका वध करने के लिए जब यहां पहुंचीं तो सबसे पहले चंड का वध किया उसके निधन के बाद मुंड युद्ध करते हुए इसी पहाड़ी पर छिप गया था। लेकिन माता इस पहाड़ी पर पहुंच कर मुंड का भी वध कर दिया था। इसी के बाद ये जगह माता मुंडेश्वरी देवी के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
मंदिर के अंदर दो ऐसे रहस्य है जिसकी सच्चाई आज तक कोई नहीं जान पाया जिसे देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। अपनी आंखों से देखते भी हैं, लेकिन समझ नहीं पाते हैं कि आखिरकार ये होता कैसे है ? इस मंदिर में प्राचीन काल से ही बलि की प्रथा है। माता से मांगी हुई मनोकामना पूरी हो जाती है वे इस मंदिर में आकर बकरे की बलि देते हैं। लेकिन, यहां की बलि दूसरी किसी भी जगह की बलि प्रथा से अलग है।
यहां माता के चरण में बलि भी चढ़ जाती है, लेकिन खून का एक कतरा बाहर नहीं निकलता है। पूजा होने के बाद बलि देने के लिए बकरे को मंदिर के भीतर माता के समक्ष लाया जाता है। बकरे को माता के सामने लाने के बाद मंदिर के पुजारी बकरे के चारों पैरो को मज़बूती से पकड़ लेता है और माता के चरणों में स्पर्श करने के बाद मंत्र का उच्चारण करता है। बकरे को माता के चरण के सामने रख देता है और फिर बकरे पर पूजा किया हुआ चावल छिड़कता है। जैसे ही वो चावल बकरे पर पड़ता है बकरा अचेत हो जाता है।
हरसू ब्रह्म धाम मंदिर (भूतों का सुप्रीम कोर्ट) :
बिहार के कैमूर जिले के चैनपुर प्रखंड क्षेत्र अंतर्गत चैनपुर बाजार स्थित हरसू ब्रह्म धाम मंदिर की ख्याति किसी से छुपी हुई नहीं है। इसकी वजह यहां लोगों की दिन प्रतिदिन बढ़ती हुई आस्था है। मान्यता है कि यदि कोई प्रेत बाधा या बुरी आत्मा से ग्रसित है तो यहां आने के बाद ठीक हो जाता है.उसे बुरी आत्मा से मुक्ति मिल जाती है। इस वजह से यहां के प्रति लोगों की आस्था बढ़ती जा रही है।
कैमूर जिले का हरसू ब्रह्मधाम ऐसा मंदिर है जहां लोग भूत-प्रेतों से मुक्ति पाने के लिए आते हैं। यहां 650 सालों से भूतों का मेला लगता है। बिहार के कैमूर जिले में एक ऐसा मंदिर है जिसे लोग भूत-प्रेत मुक्ति मंदिर कहते हैं। यहां एक ऐसा मेला लगता है जहां भूत-प्रेतों का दरबार सजता है। ओझा-गुणी आते हैं और लोगों के सिर से बुरी आत्मा के साए को भगाते हैं। ये मंदिर कैमूर जिले के चैनपुर में स्थित है और इसका असली नाम हरसु ब्रह्माधाम है। हरसू ब्रह्माधाम को भूतों का सुप्रीम कोर्ट भी कहा जाता है।
Maa Mundeshwari Bhavani
This temple is situated on the peak of Panwara hill. Its height is about 600 feet. British travellers R.N. Martin, Francis Buchanan and Block visited this temple between 1812 and 1904. According to archaeologists, the inscription found here is from 389 AD, which shows its antiquity. The carvings and idols of the temple of Mundeshwari Bhavani are of Uttargupta period. It is an octagonal temple made of stone. The main attraction is the grand and ancient stone idol of Goddess Mundeshwari in the eastern section of this temple. Maa is seated in the form of Varahi, whose vehicle is buffalo. There are four gates to enter the temple, one of which is closed and one is half-open. Panchmukhi Shivling is installed in the middle of this temple. The colour of the stone from which this Panchmukhi Shivling is made keeps changing with the position of the sun. To the west of the main temple There is a huge statue of Nandi facing east, which is still intact. Here, goat is offered in animal sacrifice but it is not slaughtered. This satvik tradition of sacrifice is not found anywhere else in the whole of India. On one side, there is a road facility of 524 feet to reach the temple where light vehicles can go.
The surprising thing is that the goat is sacrificed here without shedding blood. Along with this, you cannot keep your eyes fixed on the idol of the mother for long. There is also a Panchmukhi Shivling in the same temple complex, which changes its color three times a day. There are many stones and pillars scattered on the hill, looking at which it seems that Shri Yantra Siddha Yantra Mantra is engraved on them. As soon as you reach the main gate of the temple, the atmosphere starts to look completely devotional. As soon as you reach the door of the temple with the help of stairs, the carving of Maa Mundeshwari Bhavani temple located on the peak of Panwara hill gives a distinct identity to the temple. How old is the temple and when and what kind of stone was the idol kept in the temple made of, all these things are written in a stone inscription before entering the temple. It is clearly written on it that the idols kept in the temple are from the late Gupta period and this is an octagonal temple made of stone.
According to the belief, demons named Chand and Mund lived in this area, who used to torture people. Hearing their call, Mata Bhavani came to earth and when she reached here to kill them, she first killed Chand. After his death, Mund hid on this hill while fighting. But Mata reached this hill and killed Mund as well. After this, this place became famous as Mata Mundeshwari Devi.
There are two such mysteries inside the temple, the truth of which no one has been able to know till date, people come from far and wide to see them. They also see with their own eyes, but cannot understand how it happens? There is a practice of sacrifice in this temple since ancient times. When their wish is fulfilled, they come to this temple and sacrifice a goat. But, the sacrifice here is different from the sacrifice practice of any other place.
Here the sacrifice is also offered at the feet of the mother, but not a drop of blood comes out. After the worship is done, the goat is brought in front of the mother inside the temple for sacrifice. After bringing the goat in front of the mother, the priest of the temple holds the four legs of the goat firmly and after touching the feet of the mother, he chants a mantra. He places the goat in front of the feet of the mother and then sprinkles the rice of the worship on the goat. As soon as that rice falls on the goat, the goat becomes unconscious.
Harsu Brahm Dham Temple (Supreme Court of Ghosts):
The fame of Harsu Brahm Dham Temple located in Chainpur Bazaar under Chainpur block area of Kaimur district of Bihar is not hidden from anyone. The reason for this is the increasing faith of the people here day by day. It is believed that if someone is suffering from a ghost or evil spirit, then he gets cured after coming here. He gets freedom from the evil spirit. Due to this, people’s faith in this place is increasing.
Harsu Brahmadham of Kaimur district is such a temple where people come to get freedom from ghosts. A ghost fair of ghosts is held here for 650 years. There is a temple in Kaimur district of Bihar which people call Bhoot-Pret Mukti Mandir. A fair is held here where the court of ghosts is set up. Ojhas and Guni come and drive away the shadow of evil spirits from people’s heads. This temple is located in Chainpur of Kaimur district and its real name is Harsu Brahmadham. Harsu Brahmadham is also called the Supreme Court of ghosts.