प्रमुख दर्शनीय स्थल in Hindi :
1 – त्रिवेणी संगम : –
त्रिवेणी संगम प्रयागराज में स्थित एक पवित्र स्थल है, जहाँ तीन प्रमुख नदियाँ—गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती—मिलती हैं। यहाँ पर जल का मिलन एक अत्यंत धार्मिक और आध्यात्मिक अनुभव माना जाता है।
महत्ता:
धार्मिक महत्व: त्रिवेणी संगम हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण है। इसे मोक्ष प्राप्ति का एक महत्वपूर्ण स्थल माना जाता है। यहाँ स्नान करने से पापों का नाश और आत्मा की शुद्धि होती है।
कुम्भ मेला: हर बारह वर्ष में कुम्भ मेला यहाँ आयोजित होता है, जो विश्व के सबसे बड़े धार्मिक मेलों में से एक है। इस मेले में लाखों श्रद्धालु संगम में स्नान करने के लिए आते हैं।
आध्यात्मिक और सांस्कृतिक केंद्र: संगम का क्षेत्र कई धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का केंद्र है। यहाँ पर अक्सर धार्मिक प्रवचन, यज्ञ, और सांस्कृतिक आयोजन होते हैं।
ऐतिहासिक महत्व: त्रिवेणी संगम का उल्लेख कई प्राचीन ग्रंथों और पुराणों में मिलता है, जो इसकी प्राचीनता और धार्मिक महत्व को दर्शाता है।
इस प्रकार, त्रिवेणी संगम केवल एक भौगोलिक स्थान नहीं है, बल्कि यह एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतीक भी है।
2 – ललिता देवी शक्ति पीठ :
प्रयागराज शहर के दक्षिण दिशा में यमुना नदी के तट के निकट मीरापुर मोहल्ले में महाशक्तिपीठ ललिता देवी का प्राचीन मंदिर स्थित है। इस मंदिर का विशेष महात्म्य है। मान्यता है कि मां का यह मंदिर पौराणिक काल से स्थित है। मान्यता है कि पवित्र संगम में स्नान के पश्चात इस महाशक्तिपीठ में दर्शन-पूजन से भक्तों की मनोकामना पूरी होती है। ललिता देवी के दिव्य स्वरूप का दर्शन-पूजन करने के लिए देशभर से श्रद्धालु आते हैं।
महाभारत काल से जुड़ा है मंदिर का इतिहास :
मां ललिता की महिमा सदियों से बखानी जा रही है। किवदंति है कि महाभारत काल में लाक्षागृह अग्निकांड से सकुशल बाहर निकलने पर पांडवों ने मां ललिता का दर्शन-पूजन करने आए थे। तपस्वी संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी ने 1950 के आस-पास मंदिर का जीर्णोद्धार कराकर भव्य स्वरूप दिया। पिछले कुछ वर्षों में मंदिर काे नया स्वरूप दिया गया
पौराणिक मान्यता
पौराणिक कथा के अनुसार सती जब अपने पिता प्रजापति दक्ष द्वारा दामाद भगवान शिव का अपमान न सह सकीं तो उन्होंने नाराज होकर यज्ञ कुंड में आत्मदाह कर लिया था। जब यह बात भगवान शिव को पता चली तो वह उनके शव को लेकर क्रोध में विचरण करने लगे। माता सती से भगवान शिव के मोह को दूर करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को काट दिया। चक्र से कटकर अलग होने पर जिन 51 स्थान पर सती के अंग गिरे, वह पावन स्थान शक्तिपीठ के रूप में प्रतिष्ठित हुआ। प्रयाग में सती की हस्तांगुलिका गिरी। प्रयागराज में माता महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के स्वरूप में मां ललिता देवी विराजित हैं।
मां के दरबार में किया गया अनुष्ठान कभी व्यर्थ नहीं जाता।
3 – अलोपी देवी मंदिर :
पौराणिक कथा, इतिहास और संरचना
मान्यता है कि प्रागराज के संगम क्षेत्र में तीन स्थानों पर माता सती के दाहिने हाथ की अंगुलियां गिरी थीं अक्षय वट, मीरापुर (ललिता देवी) और अलोपी देवी । प्रयागराज में संगम के किनारे अलोपीबाग में स्थित इस मंदिर में देवी की किसी मूर्ति की पूजा नहीं की जाती है. दरअसल यहां देवी की मूर्ति स्थापित ही नहीं है, उसके स्थान पर यहां लकड़ी का एक पालना यानी डोला लटक रहा है जिसे देवी के अवतार में पूजा जाता है । स्थानीय भक्तों के अलावा देश विदेश से लोग इसे देखने के लिए आते हैं । मान्यता है कि यहां रक्षा सूत्र बांधकर मनोकामना मांगने से मां मनोकामना पूरी करती हैं और रक्षा सूत्र बंधे रहने तक अपने भक्त की सुरक्षा भी करती हैं ।
पौराणिक कथा:
मंदिर को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं । एक कथा के अनुसार हिमालय के राजा दक्ष की बेटी सती ने पिता के खिलाफ जाकर शिव को अपना पति स्वीकार किया था । राजा दक्ष इससे रुष्ट थे. उन्होंने एक बड़ा यज्ञ किया और उसमें शिव और सती को नहीं बुलाया । पिता के प्यार में सती बिना बुलाए ही यज्ञ में पहुंच गई और वहां उनका एवं शिव का अपमान किया गया । इससे व्यथित होकर सती ने यज्ञ की अग्नि में ही छलांग लगाकर अपने प्राण त्याग दिए । शिव को जानकारी पहुंची, वो यज्ञस्थल पर पहुंचे और क्रोध में भरकर उन्होंने सती के शव को बाहों में लेकर तांडव नृत्य करना शुरू कर दिया । तांडव नृत्य से से धरती कांपने लगी और सभी देवता घबरा गए । तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शव के 51 टुकड़े कर दिए । जहां जहां ये टुकड़े गिरे वहां शक्तिपीठ स्थापित हो गए । इस स्थान पर देवी के दाहिने हाथ का पंजा कटकर गिरा और एक कुंड में विलुप्त हो गया । तबसे इस मंदिर को अलोपीशंकरी शक्तिपीठ का दर्जा प्राप्त है ।
एक दूसरी कथा भी प्रचलित है । इसके अनुसार पहले यहां घना जंगल था और यहां से गुजरने वालों को डाकू लूट लेते थे । एक दुल्हन को डोली में लेकर एक बारात यहां से गुजर रही थी कि डाकुओं ने हमला कर दिया । डाकुओं ने बारात में शामिल सभी लोगों को लूट लिया लेकिन जब वो दुल्हन को लूटने डोली के पास पहुंचे तो डोली खाली थी और दुल्हन विलुप्त हो चुकी थी । लोगों ने विलुप्त होने वाली नई दुल्हन को मां भगवती का अवतार माना और इसी स्थान पर देवी की डोली की पूजा होने लगी ।
मंदिर का इतिहास :
मंदिर का इतिहास ज्यादा पुराना नहीं कहा जाता है । कहते हैं कि मराठा राज के महान योद्धा श्रीनाथ महादजी शिंदे ने 1772 ईस्वी में प्रयागराज में जब अल्प प्रवास किया तो उस दौरान महारानी बैजाबाई सिंधिया के निवेदन पर इस मंदिर को बनवाया गया था । मंदिर को बनवाने के साथ साथ महादजी शिंदे ने प्रयागराज के संगम तटों की मरम्मत भी करवाई और इस इलाके का नवीनीकरण भी करवाया । यहां पहले एक छोटा सा स्थानीय मंदिर था जिसमें झूला लटकता था । बाद में इसकी व्यवस्था श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी ने संभाल ली । ये अखाड़ा दारागंज का अखाड़ा कहा जाता है और मंदिर की देखरेख इसी के जिम्मे है ।
अलोपी देवी मंदिर की संरचना :
अलोपी देवी मंदिर अलोपी बाग में स्थित है. इसके गर्भगृह में एक कुंड है । इस कुंड पर दस फीट का एक चांदी का चबूतरा बना हुआ है । इसके ठीक ऊपर लकड़ी का एक पालना जिसे डोली भी कहा जाता है, झूल रहा है । इसी झूले को देवी का प्रतीक कहा जाता है । ये झूला करीब दस फीट का कहा जाता है । झूला लकड़ी का है लेकिन लड़की को संरक्षित करने के लिए इसे चांदी से मढ़ दिया गया है । झूले की सुरक्षा के लिए इसके आस पास सुरक्षा बल भी तैनात है । एक पुजारी यहां हमेशा रहता है जो मंदिर में झूले की पूजा कर रहे लोगों की मदद करता है । यहां भक्त आकर माता के झूले पर ही श्रृंगार का सामान चढ़ाते हैं और माता के वस्त्र भी अर्पित करते हैं । इसी झूले को मां का स्वरूप मानकर इसे वस्त्र और श्रृंगार का सामान अर्पण किया जाता है । जिस जगह पर झूला लटक रहा है, उसके नीचे मढ़े चांदी के प्लेटफॉर्म के नीचे ही वो पवित्र कुंड बताया जाता है जहां मां सती का पंजा गिरकर विलुप्त हो गया । हालांकि सुरक्षा की दृष्टि से कुंड को ढक दिया गया है और उस पर चांदी का पत्थर लगा दिया गया है । मुख्य झूले के आस पास के प्रांगण में मां भगवती के नौ स्वरूपों की मूर्तियां भी स्थापित हैं जिनकी पूजा की जाती है ।
4 – लेटे हुए हनुमान जी :
यहां के दर्शन बिना अधूरा माना जाता है गंगा स्नान :
हनुमानजी यानी चमत्कार का दूसरा नाम। पौराणिक काल से बजरंगबली का नाम चमत्कारों से जुड़ा है। चाहे फिर सीने में बैठे राम-जानकी के दर्शन करवाना हो या फिर लक्ष्मणजी को जीवित करने के लिए संजीवनी बूटी लाना हो। न सिर्फ पौराणिक काल बल्कि कलियुग भी हनुमानजी के चमत्कारों से सजा है। हमारे देश में जगह-जगह पर हनुमानजी के प्राचीन चमत्कारिक मंदिर हैं। इन्हीं में से एक है संगम किनारे लेटे हनुमान का मंदिर। अपने आप में अनोखे इस मंदिर में हनुमानजी की प्रतिमा खड़ी हुई नहीं बल्कि लेटी हुई अवस्था में विराजमान है। संगम के किनारे स्थित इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि संगम स्नान के बाद यहां दर्शन नहीं किए तो स्नान अधूरा माना जाता है।
ऐसी है यहां की मान्यता :
माना जाता है हनुमानजी की यह विचित्र प्रतिमा दक्षिणाभिमुखी और 20 फीट लंबी है। माना जाता है कि यह धरातल से कम से कम 6 7 फीट नीचे है। संगम नगरी में इन्हें बड़े हनुमानजी, किले वाले हनुमानजी, लेटे हनुमानजी और बांध वाले हनुमानजी के नाम से जाना जाता है। इस प्रतिमा के बारे ऐसा माना जाता है कि इनके बाएं पैर के नीचे कामदा देवी और दाएं पैर के नीचे अहिरावण दबा है। उनके दाएं हाथ में राम-लक्ष्मण और बाएं हाथ में गदा शोभित है। बजरंगबली यहां आने वाले सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
इसलिए यहां लेटे हनुमानजी :
यहां के बारे में ऐसा कहा जाता है कि लंका पर जीत हासिल करने के बाद जब हनुमानजी लौट रहे थे तो रास्ते में उन्हें थकान महसूस होने लगी। तो सीता माता के कहने पर वह यहां संगम के तट पर लेट गए। इसी को ध्यान में रखते हुए यहां लेटे हनुमानजी का मंदिर बन गया।
मंदिर का इतिहास :
यह मंदिर कम से कम 600-700 वर्ष पुराना माना जाता है। बताते है कि कन्नौज के राजा के कोई संतान नहीं थी। उनके गुरु ने उपाय के रूप में बताया, ‘हनुमानजी की ऐसी प्रतिका निर्माण करवाइए जो राम लक्ष्मण को नाग पाश से छुड़ाने के लिए पाताल में गए थे। हनुमानजी का यह विग्रह विंध्याचल पर्वत से बनवाकर लाया जाना चाहिए।’ जब कन्नौज के राजा ने ऐसा ही किया और वह विंध्याचल से हनुमानजी की प्रतिमा नाव से लेकर आए। तभी अचानक से नाव टूट गई और यह प्रतिका जलमग्न हो गई। राजा को यह देखकर बेहद दुख हुआ और वह अपने राज्य वापस लौट गए। इस घटना के कई वर्षों बाद जब गंगा का जलस्तर घटा तो वहां धूनी जमाने का प्रयास कर रहे राम भक्त बाबा बालगिरी महाराज को यह प्रतिमा मिली। फिर उसके बाद वहां के राजा द्वारा मंदिर का निर्माण करवाया गया।
मूर्ति को हिला नहीं सके मुगल सैनिक :
प्राचीन काल में मुगल शासकों के आदेश पर हिंदू मंदिरों को तोड़ने का क्रम जारी था, लेकिन यहां पर मुगल सैनिक हनुमानजी की प्रतिमा को हिला भी न सके। वे जैसे-जैसे प्रतिमा को उठाने का प्रयास करते वह प्रतिमा वैसे-वैसे और अधिक धरती में बैठी जा रही थी। यही वजह है कि यह प्रतिमा धरातल से इतनी नीचे बनी है।
Major tourist attractions in English :
1 – Triveni Sangam :
Triveni Sangam is a sacred site located in Prayagraj, where three major rivers—Ganga, Yamuna and mythical Saraswati—meet. The meeting of waters here is considered a very religious and spiritual experience.
Significance:
Religious significance: Triveni Sangam is very important in Hinduism. It is considered an important place for attaining salvation. Bathing here destroys sins and purifies the soul.
Kumbh Mela: Kumbh Mela is held here every twelve years, which is one of the largest religious fairs in the world. In this fair, millions of devotees come to bathe in the Sangam.
Spiritual and cultural center: The area of Sangam is the center of many religious and cultural events. Religious discourses, yagyas, and cultural events are often held here.
Historical significance: Triveni Sangam is mentioned in many ancient texts and Puranas, which shows its antiquity and religious importance.
Thus, Triveni Sangam is not only a geographical place, but it is also an important religious and cultural symbol.
2 – Lalita Devi Shakti Peeth:
The ancient temple of Mahashakti Peeth Lalita Devi is situated in Mirapur locality near the banks of river Yamuna in the south of Prayagraj city. This temple has special significance. It is believed that this temple of mother has been situated since ancient times. It is believed that after bathing in the holy Sangam, the wishes of the devotees are fulfilled by visiting and worshipping in this Mahashakti Peeth. Devotees from all over the country come to visit and worship the divine form of Lalita Devi.
The history of the temple is linked to the Mahabharata period:
The glory of mother Lalita has been praised for centuries. Legend has it that during the Mahabharata period, the Pandavas came to visit and worship mother Lalita after coming out safely from the Lakhshagriha fire. Ascetic saint Prabhudatta Brahmachari renovated the temple around 1950 and gave it a grand look. In the last few years, the temple has been given a new look.
Mythological belief :
According to the mythological story, when Sati could not tolerate the insult of her son-in-law Lord Shiva by her father Prajapati Daksh, she got angry and committed suicide in the yagya kund. When Lord Shiva came to know about this, he started roaming around in anger with her dead body. To remove Lord Shiva’s attachment to Mother Sati, Lord Vishnu cut Sati’s body with his Sudarshan Chakra. The 51 places where Sati’s body parts fell after being cut off by the Chakra, those holy places became famous as Shaktipeeth. Sati’s hand finger fell in Prayag. Mother Lalita Devi is seated in the form of Mother Mahakali, Mahalakshmi and Mahasaraswati in Prayagraj.
The rituals performed in the court of the mother never go in vain.
3 – Alopi Devi Temple:
Mythology, History and Structure :
It is believed that the fingers of the right hand of Mata Sati fell at three places in the Sangam area of Pragraj, Akshay Vat, Meerapur (Lalita Devi) and Alopi Devi. No idol of the goddess is worshipped in this temple located in Alopibagh on the banks of Sangam in Prayagraj. Actually, the idol of the goddess is not installed here, in its place a wooden cradle i.e. dola is hanging here which is worshipped as the incarnation of the goddess. Apart from local devotees, people from all over the country and abroad come to see it. It is believed that by tying a Raksha Sutra here and asking for a wish, the mother fulfills the wish and also protects her devotee as long as the Raksha Sutra is tied.
Mythology:
Many mythological stories are popular about the temple. According to a story, Sati, the daughter of King Daksha of the Himalayas, went against her father and accepted Shiva as her husband. King Daksha was angry with this. He performed a big yagya and did not invite Shiva and Sati. Sati reached the yagya without being invited because of her father’s love and there she and Shiva were insulted. Distressed by this, Sati jumped into the yagya fire and gave up her life. Shiva came to know about this, he reached the yagya place and filled with anger, he started performing the Tandava dance with Sati’s corpse in his arms. The earth started trembling due to the Tandava dance and all the gods got scared. Then Lord Vishnu cut Sati’s corpse into 51 pieces with his Sudarshan Chakra. Wherever these pieces fell, Shaktipeeths were established. At this place, the paw of the right hand of the goddess got cut and fell and disappeared in a pond. Since then, this temple has the status of Alopishankari Shaktipeeth.
Another story is also popular. According to this, earlier there was a dense forest here and the robbers used to rob the people passing by. A wedding procession carrying a bride in a palanquin was passing through here when bandits attacked. The bandits looted all the people in the procession but when they reached near the palanquin to loot the bride, the palanquin was empty and the bride had disappeared. People considered the newly disappeared bride to be the incarnation of Mother Bhagwati and the palanquin of the goddess started being worshipped at this place.
History of the temple:
The history of the temple is not said to be very old. It is said that when the great warrior of the Maratha Raj, Shrinath Mahadji Shinde, stayed in Prayagraj for a short time in 1772 AD, during that time this temple was built on the request of Maharani Baijabai Scindia. Along with building the temple, Mahadji Shinde also got the Sangam banks of Prayagraj repaired and this area was also renovated. Earlier there was a small local temple here in which a swing used to hang. Later its management was taken over by Shri Panchayati Akhara Mahanirvani.
Structure of Alopi Devi Temple:
Alopi Devi Temple is situated in Alopi Bagh. There is a pond in its sanctum sanctorum. A ten feet silver platform is built on this pond. A wooden cradle, also called a doli, is swinging right above it. This swing is said to be the symbol of the goddess. This swing is said to be about ten feet long. The swing is made of wood but it has been covered with silver to protect the girl. Security forces are also deployed around it to protect the swing. A priest always stays here who helps the people worshipping the swing in the temple. Devotees come here and offer makeup items on the swing of the mother and also offer clothes to the mother. Considering this swing as the form of the mother, clothes and makeup items are offered to it. The place where the swing is hanging, below the silver plated platform, is said to be the holy pond where the paw of Maa Sati fell and disappeared. However, for safety, the pond has been covered and a silver stone has been placed on it. In the courtyard around the main swing, idols of nine forms of Maa Bhagwati are also installed, which are worshipped.
4 – Laying Hanuman Ji:
Ganga bath is considered incomplete without darshan here:
Hanuman Ji means another name for miracles. Since ancient times, the name of Bajrangbali is associated with miracles. Whether it is to show Ram-Janaki sitting in the chest or to bring Sanjivani booti to revive Lakshman Ji. Not only the ancient times but also Kaliyug is adorned with the miracles of Hanuman Ji. There are ancient miraculous temples of Hanuman Ji at many places in our country. One of these is the temple of Laying Hanuman on the banks of Sangam. In this unique temple, the statue of Hanumanji is not standing but in a lying position. It is said about this temple located on the banks of Sangam that if you do not visit here after bathing in Sangam, then the bath is considered incomplete.
This is the belief here:
It is believed that this strange statue of Hanumanji is south facing and 20 feet long. It is believed that it is at least 6-7 feet below the ground level. In Sangam city, he is known as Badi Hanumanji, Qila Wale Hanumanji, Lathe Hanumanji and Bandh Wale Hanumanji. It is believed about this statue that Kamada Devi is pressed under his left foot and Ahiravan is pressed under his right foot. Ram-Lakshmana are adorned in his right hand and mace in his left hand. Bajrangbali fulfills the wishes of all the devotees who come here.
That’s why Hanumanji lay down here:
It is said about this place that when Hanumanji was returning after winning over Lanka, he started feeling tired on the way. So on the request of Sita Mata, he lay down on the banks of Sangam. Keeping this in mind, a temple of Hanumanji laying down here was built.
History of the temple:
This temple is believed to be at least 600-700 years old. It is said that the king of Kannauj did not have any children. His guru told him as a solution, ‘Get such a statue of Hanumanji made who went to the netherworld to free Ram Laxman from the nag pash. This idol of Hanumanji should be made and brought from Vindhyachal mountain.’ When the king of Kannauj did the same and he brought the statue of Hanumanji from Vindhyachal by boat. Then suddenly the boat broke and this statue got submerged in water. The king was very sad to see this and he returned to his kingdom. Many years after this incident, when the water level of Ganga decreased, Ram Bhakt Baba Balgiri Maharaj, who was trying to light a fire there, found this idol. Then the king of that place built a temple.
Mughal soldiers could not move the idol:
In ancient times, the process of breaking Hindu temples was going on on the orders of Mughal rulers, but here Mughal soldiers could not even move the idol of Hanumanji. As they tried to lift the idol, the idol was sinking more and more into the ground. This is the reason why this idol is built so low from the ground level.