प्रमुख दर्शनीय स्थल in Hindi :
1 – मार्कण्डेय महादेव :
सप्तपुरियों में से एक काशी से महज 30 किमी की दूरी पर स्थित मार्कंडेय महादेव का पावन धाम, जहां दर्शन मात्र से अकाल मृत्यु का खतरा टल जाता है और शिव भक्त को लंबी आयु का वरदान मिलता है। मरणासन्न व्यक्ति की प्राणरक्षा में समर्थ महामंत्र ‘महामृत्युंजय’ की ख्याति मार्कण्डेय के ही कारण है। इस मंत्र पर लोक आस्था इतनी अधिक है कि वैदिक मंत्र होने के बावजूद महामृत्युंजय मंत्र मार्कण्डेय रचित माना जाता है। मार्कण्डेय इतने महान ऋषि हैं कि उनकी उपस्थिति भगवान श्रीराम के युग से पहले, श्रीराम कथा में और तदनंतर महाभारत काल तक सुलभ है। मार्कण्डेय पुराण इन्हीं की रचना है, जिसका एक अंश वह दुर्गासप्तशती है, जिसका नवरात्र में सश्रद्धा पारायण किया जाता है।
महाभारत के अनुसार-
मार्कण्डेय ने हज़ार-हज़ार युगों के अंत में होने वाले अनेक महाप्रलय देखे हैं। ‘नैके युगसहस्रान्तास्त्वया दृष्टा महामुने’ वाक्य इसी का प्रमाण है। इस महाकाव्य में इन महामुनि को अजर-अमर कहा गया है।
महाभारत में लिखा है कि जब मार्कण्डेय वनवास अवधि में युधिष्ठिर आदि पाण्डवों से मिलने पहुंचे तब-
‘अजराश्चामरश्चैव रूपौदार्यगुणान्वित:। व्यदृश्यत तथा युक्तो यथा स्यात् पञ्चविंशक:।’ अर्थात वे रूप और उदारता आदि गुणों से सम्पन्न तथा अजर-अमर थे। वैसे बड़े-बूढ़े होने पर भी वे ऐसे दिखाई देते थे, मानो पच्चीस वर्ष के तरुण हों ! महर्षि मार्कण्डेय को पुराणों में अष्ट चिरंजीवियों में एक माना गया है।
कैसे चिरंजीवी हुए मार्कण्डेय :
मार्कण्डेय के चिरंजीवी बनने की कथा पद्मपुराण के उत्तरखंड में है, जिसके अनुसार-
मृकण्डु मुनि ने अपनी पत्नी के साथ घोर तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया और उनके वरदान से पुत्र रूप में मार्कण्डेय को पाया। शिव ने मृकण्डु से पूछा था कि ‘तुम्हें दीर्घ आयु वाला गुणहीन पुत्र चाहिए या अल्प आयु वाला गुणवान पुत्र ?’ तब मृकण्डु ने गुणवान पुत्र की कामना की।
भगवान शिव ने मार्कण्डेय की आयु 16 वर्ष निश्चित की थी। जब मार्कण्डेय का सोलहवां वर्ष प्रारम्भ हुआ तो पिता शोक से भर गए। कारण पूछने पर जब पिता ने मार्कण्डेय को अल्पायु की कथा बताई तब वे माता-पिता की आज्ञा लेकर गोमती और गंगा के संगम तट पर गए (आध्यात्मिक मान्यता के अनुसार) और एक शिवलिंग स्थापित कर आराधना में जुट गए। तय समय पर काल या यमराज उनके प्राण हरने आ पहुंचा।
तब मार्कण्डेय ने कहा कि मैं शिवजी का महामृत्युंजय स्तोत्र से स्तवन कर रहा हूं, इसे पूरा कर लूं, तब तक ठहर जाओ। मगर काल नहीं माना और बलपूर्वक मार्कण्डेय को ग्रसना चाहा। ठीक उसी समय शिवलिंग से महादेव प्रकट हुए और हुंकार भरकर मेघ के समान गर्जना करते हुए काल की छाती पर चरण से प्रहार किया।
इसी घटना के बाद शिवजी का नाम कालान्तक पड़ा क्योंकि उन्होंने काल का अंत कर न केवल मार्कण्डेय के प्राणों की रक्षा की बल्कि उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें सदा सर्वदा के लिए काल-मुक्त भी कर दिया।
2 – स्वर्वेद महामंदिर :
स्वर्वेद महामंदिर, उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिलें में स्थित हैं। यह मंदिर चेतना का उदात्त क्षेत्र हैं, जो सत्य के साधकों को भौतिक विज्ञान की धारणा से परे चेतन संस्थाओं के अस्तित्व का अनुभव करने के लिए एक मंच और बैठक का आधार प्रदान करता हैं। स्वर्वेद महामंदिर स्वर्वेद को समर्पित हैं, जो एक अद्वितीय आध्यात्मिक ग्रंथ हैं, जो दुनिया को बेजोड़ ऊर्जा प्रदान कर रहा हैं। इस मंदिर की शुरुवात 2004 में शुरु की गई थी।
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 18 दिसंबर 2023 को वाराणसी में दुनिया के सबसे बड़े मेडिटेशन सेंटर स्वर्वेद महामंदिर का उद्घाटन किया। इस मंदिर को कमल के फूल की तरह तैयार किया गया है। इस मेडिटेशन सेंटर में एक बार में 20000 लोग शामिल हो सकते हैं।
महामंदिर की विशेषताएं :
दुनिया का सबसे बड़ा ध्यान केंद्र।
जागरूक संस्थाओं को जानने के लिए अनुसंधान केंद्र।
3137 मकराना संगमरमर पर उत्कीर्ण श्लोक उत्कीर्ण।
20000 से अधिक लोग एक साथ बैठकर ध्यान कर सकते हैं।
125 पंखुड़ी कमल गुंबद।
आध्यात्मिकता के शिखर से प्रेरित – स्वार्वेद।
भारतीय विरासत की झलक को दर्शाती जटिल नक्काशीदार बलुआ पत्थर संरचनाएं।
औषधीय जड़ी बूटियों की विशेषता वाला उत्तम उद्यान।
3 – कीनाराम जन्म स्थल :
बाबा किनाराम उत्तर भारतीय संत परंपरा के एक प्रसिद्ध संत थे, जिनकी यश-सुरभि परवर्ती काल में संपूर्ण भारत में फैल गई। वाराणसी के पास चंदौली जिले के ग्राम रामगढ़ में एक कुलीन रघुवंशी क्षत्रिय परिवार में सन् 1601 ई. में इनका जन्म हुआ था। बचपन से ही इनमें आध्यात्मिक संस्कार अत्यंत प्रबल थे। तत्कालीन रीति के अनुसार बारह वर्षों के अल्प आयु में, इनकी घोर अनिच्छा रहते हुए भी, विवाह कर दिया गया किंतु दो तीन वर्षों बाद द्विरागमन की पूर्व संध्या को इन्होंने हठपूर्वक माँ से माँगकर दूध-भात खाया। ध्यातव्य है कि सनातन धर्म में मृतक संस्कार के बाद दूध-भात एक कर्मकांड है। बाबा के दूध-भात खाने के अगले दिन सबेरे ही वधू के देहांत का समाचार आ गया। सबको आश्चर्य हुआ कि इन्हें पत्नी की मृत्यु का पूर्वाभास कैसे हो गया। अघोर पंथ के ज्वलंत संत के बारे में एक कथानक प्रसिद्ध है,कि एक बार काशी नरेश अपने हाथी पर सवार होकर शिवाला स्थित आश्रम से जा रहे थे,उन्होनें बाबा किनाराम के तरफ तल्खी नजरों से देखा,तत्काल बाबा किनाराम ने आदेश दिया दिवाल चल आगे, इतना कहना कि दिवाल चल दिया और काशी नरेश की हाथी के आगे – आगे चलने लगा। तब काशी नरेश को अपने अभिमान का बोध हो गया और तत्काल बाबा किनाराम जी के चरणों में गिर गये।
कीनाराम जन्म स्थल का प्रसिद्ध कुआँ :
कहा जाता है कि कीनाराम अपनी तपोस्थली पर कुँए का निर्माण करा रहे थे कि ईंट समाप्त हो गयी । तत्पश्चात कीनाराम ने ईंट की जगह गाय के गोबर से तैयार एक उपला (गोईंठा) रखा और राजमिस्त्री से कहा कि अब उपले से ही कुँए की जोड़ाई करो । इस कुँए का जल पीने से विभिन्न प्रकार की बीमारियों का ईलाज हो जाता है। इसके जल श्रोत का आजतक पता नहीं लगाया जा सका है। कहा जाता है कि बाबा कीनाराम इसी कुँए में कूदे और 30 किलोमीटर दूर क्रीं कुण्ड वाराणसी में निकले।
4 – सारनाथ :
सारनाथ भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित एक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल है, जो वाराणसी के पास स्थित है। यह स्थल बौद्ध धर्म के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यहीं पर भगवान बुद्ध ने अपने पहले उपदेश की शुरुआत की थी।
सारनाथ में प्रमुख स्थल हैं:
1. धम्मेक स्तूप: यह स्तूप बौद्ध धर्म के पहले उपदेश की याद में बनाया गया था।
2. धर्मराजिका स्तूप: यह भी एक महत्वपूर्ण स्तूप है जो बौद्ध धर्म की शिक्षाओं से जुड़ा हुआ है।
3. चौखण्डी स्तूप : चौखण्डी स्तूप सारनाथ का एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल है, जो भगवान बुद्ध के जीवन और उनके उपदेशों से संबंधित है। यह स्तूप बौद्ध धर्म के प्रारंभिक काल से संबंधित है और यह बौद्ध धार्मिक वास्तुकला का एक अच्छा उदाहरण है।
4. सारनाथ संग्रहालय: इसमें बौद्ध कला और मूर्तियों का एक बड़ा संग्रह है, जिसमें प्रसिद्ध अशोक स्तंभ की चार शेरों की प्रतिमा शामिल है।
5. मुलगंध कुटी विहार: यह एक आधुनिक बौद्ध मंदिर है, जिसे महात्मा गांधी के निर्देश पर 1931 में बनवाया गया था। यह मंदिर सरस्वती प्राचीन बौद्ध शिल्प और वास्तुकला का एक सुंदर उदाहरण है।
6. ठाराबा मंदिर: यह बौद्ध धार्मिक स्थल है जो बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है। यहाँ की वास्तुकला और धार्मिक वातावरण श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है।
7. सारनाथ बौद्ध मंदिर: यह मंदिर थाईलैंड के बौद्धों द्वारा निर्मित है और इसकी वास्तुकला थाई शैली की है। यहाँ बौद्ध धर्म की महत्वपूर्ण शिक्षाएँ और प्रार्थना की जाती है।
8. चायना मंदिर (चीन का मंदिर): यह मंदिर चीनी बौद्धों द्वारा बनवाया गया है और इसकी वास्तुकला चीनी शैली की है। यहाँ बौद्ध धर्म के अनुयायी ध्यान और पूजा करते हैं।
9. जापानी मंदिर: जापानी बौद्धों द्वारा बनवाया गया यह मंदिर भी सारनाथ में स्थित है। यह मंदिर बौद्ध धर्म की जापानी शाखा के अनुयायियों के लिए विशेष महत्व रखता है।
ये मंदिर और धार्मिक स्थल सारनाथ को एक महत्वपूर्ण बौद्ध तीर्थ स्थल बनाते हैं और यहाँ की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाते हैं। सारनाथ एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है और यहाँ हर साल कई पर्यटक और श्रद्धालु आते हैं।
Major tourist attractions in English :
1 – Markandeya Mahadev:
The holy abode of Markandeya Mahadev, located at a distance of just 30 km from Kashi, one of the Sapt Puris, where the danger of untimely death is averted by mere darshan and the devotee of Shiva gets the boon of long life. The fame of the great mantra ‘Mahamrityunjaya’, which is capable of saving the life of a dying person, is due to Markandeya. The public faith in this mantra is so high that despite being a Vedic mantra, the Mahamrityunjaya mantra is considered to have been composed by Markandeya. Markandeya is such a great sage that his presence is visible before the era of Lord Shri Ram, in the Shri Ram Katha and thereafter till the Mahabharata era. Markandeya Purana is his creation, a part of which is the Durgasaptashati, which is recited with devotion during Navratri.
According to the Mahabharata-
Markandeya has seen many great deluges that occur at the end of thousands of eras. The sentence ‘Naike Yugasahasrantastvaya Drishta Mahamune’ is proof of this. In this epic, this great sage has been described as immortal.
It is written in the Mahabharata that when Markandeya went to meet Yudhishthira and other Pandavas during the exile period, then-
‘Ajraashchamaraashchaiva rupaudaaryagunaanvit:. Vyadarshiyat tatha yukto yatha syat panchvinshak:.’ That is, he was endowed with qualities like beauty and generosity and was immortal. Even though he was old, he looked as if he was a young man of twenty-five years! Maharishi Markandeya has been considered one of the eight immortals in the Puranas.
How did Markandeya become immortal:
The story of Markandeya becoming immortal is in the Uttarkhand of Padma Purana, according to which-
Mrikandu Muni pleased Lord Shiva by performing severe penance with his wife and got Markandeya as his son by his blessing. Shiva had asked Mrikandu, ‘Do you want a son with a long life but no qualities or a son with a short life but qualities?’ Then Mrikandu wished for a quality son.
Lord Shiva had fixed the age of Markandeya to be 16 years. When Markandeya’s sixteenth year started, his father was filled with grief. When his father asked the reason for his short life, Markandeya told him the story of his short life. Then he took his parents’ permission and went to the confluence of Gomti and Ganga (as per spiritual belief) and established a Shivling and started worshipping it. At the appointed time, Kaal or Yamraj arrived to take his life.
Then Markandeya said that I am praising Lord Shiva with Mahamrityunjaya Stotra, wait till I finish it. But Kaal did not agree and tried to swallow Markandeya forcefully. At that very moment, Mahadev appeared from the Shivling and roared like a cloud and struck Kaal’s chest with his foot.
After this incident, Shiva was named Kaalantak because by ending Kaal, he not only saved Markandeya’s life but also got pleased with his devotion and made him Kaal-free forever.
2 – Swarved Mahamandir:
Swarved Mahamandir is located in Varanasi district of Uttar Pradesh. This temple is a sublime realm of consciousness, which provides a platform and meeting ground for seekers of truth to experience the existence of conscious entities beyond the perception of physics. Swarved Mahamandir is dedicated to Swarved, a unique spiritual text, which is providing unmatched energy to the world. This temple was started in 2004.
Prime Minister Narendra Modi inaugurated the world’s largest meditation center Swarved Mahamandir in Varanasi on 18 December 2023. This temple has been designed like a lotus flower. 20000 people can attend this meditation center at a time.
Features of Mahamandir:
World’s largest meditation centre.
Research centre for knowing the enlightened institutions.
3137 verses engraved on Makrana marble.
More than 20000 people can sit and meditate together.
125 petal lotus dome.
Inspired by the peak of spirituality – Swarveda.
Intricately carved sandstone structures showing glimpse of Indian heritage.
Exquisite garden featuring medicinal herbs.
3 – Kinaram Birth Place:
Baba Kinaram was a famous saint of the North Indian saint tradition, whose fame spread all over India in later times. He was born in 1601 AD in an elite Raghuvanshi Kshatriya family in village Ramgarh of Chandauli district near Varanasi. He had very strong spiritual values since childhood. According to the custom of that time, he was married at the young age of twelve years, despite his strong reluctance, but after two-three years, on the eve of his second coming, he stubbornly asked his mother and ate milk and rice. It is worth noting that in Sanatan Dharma, after the last rites of the deceased, Dudh-Bhat is a ritual. The next day after Baba ate Dudh-Bhat, the news of the death of the bride came in the morning. Everyone was surprised that how he had a premonition of his wife’s death. There is a famous story about the fiery saint of Aghor sect, that once the King of Kashi was going from the ashram situated in Shivala on his elephant, he looked at Baba Kinaram with sharp eyes, immediately Baba Kinaram ordered the wall to move ahead, saying this the wall moved and started walking ahead of the elephant of the King of Kashi. Then the King of Kashi realized his pride and immediately fell at the feet of Baba Kinaram ji.
The famous well of Kinaram’s birth place:
It is said that Kinaram was getting a well constructed at his Taposthali when the bricks got finished. After that Keenaram put a cow dung cake (Gointha) in place of the brick and told the mason to build the well using the cow dung cake. Drinking water from this well cures various diseases. Its water source has not been traced till date. It is said that Baba Kinaram jumped into this well and came out 30 km away in Krim Kund Varanasi.
4 – Sarnath:
Sarnath is a historic and religious site located in the Indian state of Uttar Pradesh, near Varanasi. This place is of great significance in Buddhism because it is where Lord Buddha delivered his first sermon.
Key sites in Sarnath include:
1. Dhamek Stupa: This stupa was erected to commemorate Buddha’s first sermon.
2. Dharmarajika Stupa: Another important stupa linked to the teachings of Buddhism.
3. Chaukhandi Stupa: This stupa is a significant historical site associated with Buddha’s life and teachings. It represents an early example of Buddhist architectural style.
4. Sarnath Museum: This museum houses a large collection of Buddhist art and sculptures, including the famous Ashoka Pillar with its four lion capitals.
5. Mulagandha Kuti Vihara: This modern Buddhist temple was established in 1931 under the guidance of Mahatma Gandhi. It is a beautiful example of ancient Buddhist art and architecture.
6. Tharabad Temple: This Buddhist religious site is important for followers of Buddhism. Its architecture and spiritual environment attract devotees.
7. Sarnath Buddhist Temple: Built by Thai Buddhists, this temple features Thai-style architecture and is a place for important Buddhist teachings and prayers.
8. China Temple: Constructed by Chinese Buddhists, this temple reflects traditional Chinese architectural style. It serves as a place for meditation and worship for Buddhist followers.
9. Japanese Temple: This temple, built by Japanese Buddhists, holds special significance for the Japanese branch of Buddhism.
These temples and religious sites make Sarnath an important Buddhist pilgrimage site and showcase its cultural diversity. Sarnath attracts numerous tourists and devotees every year.