Kashi To Vindhyachal Dham (काशी से विंध्याचल धाम)

3,400.00

शास्त्रों के अनुसार, विंध्याचल शहर को देवी दुर्गा का निवास भी माना जाता है। इस स्थान के पास, अन्य देवताओं को समर्पित कई मंदिर पाए जाते हैं। उनमें से मुख्य अष्टभुजी देवी मंदिर और काली खोह मंदिर हैं। ऐसा कहा जाता है कि देवी ने राक्षस महिषासुर का वध करने के बाद रहने के लिए विंध्यांचल को चुना था। विंध्यांचल के मंदिरों में हजारों भक्तों को देखा जा सकता है और नवरात्रि के दिनों में यह संख्या और भी बढ़ जाती है। इस त्यौहार के दौरान पूरे शहर को दीपों और फूलों से सजाया जाता है। देवी विंध्यवासिनी का नाम विंध्य पर्वत से लिया गया है, जिसका शाब्दिक अर्थ है, “जो विंध्य में निवास करती है”।

ऐसा माना जाता है कि देवी सती का बायाँ अंगूठा यहाँ गिरा था और तब से यह स्थान सबसे ज़्यादा देखे जाने वाले शक्तिपीठों में से एक माना जाता है।

According to scriptures, the town of Vindhyachal is also believed to be the abode of Goddess Durga. Near this place, several temples dedicated to other deities are found. Chief among them are the Ashtabhuji Devi Temple and the Kali Khoh Temple. It is said that the Goddess chose Vindhyachal to reside after killing the demon Mahishasura. Thousands of devotees can be seen in the temples of Vindhyachal and the number increases even more during the days of Navratri. The entire town is decorated with lamps and flowers during this festival. Goddess Vindhyavasini derives her name from the Vindhya mountains, which literally means, “one who resides in the Vindhyas”.

It is believed that the left thumb of Goddess Sati fell here and since then, this place is considered one of the most visited Shakti Peethas.

VARANASI TO VINDHYACHAL-ASHTABHUJA-KALI KHOH CAB BOOKING PRICE :

SWIFT DZIRE : INR 3400/-
INNOVA : INR 4650/-
INNOVA CHRISTA : INR 4900/-
ERTIGA : INR 4150/-
CRUISER (NON AC) : INR 5050/-
CRUISER (AC) : INR 5800/-
TRAVELER (17 SEATER) : INR 7200/-
TRAVELER (26 SEATER) : INR 9950/-
BUS (32 Seater 2×2 Push Back) – INR 12550/-
BUS (52 Seater 2×2 Push Back) – INR 17950/

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प्रमुख दर्शनीय स्थल in Hindi :

1 – माँ विंध्यवासिनी मंदिर :

प्रयाग एवं काशी के मध्य ( मिर्जापुर शहर के अंतर्गत ) विंध्याचल नामक तीर्थ है जहां माँ विंध्यवासिनी निवास करती हैं। श्री गंगा जी के तट पर स्थित यह महातीर्थ शास्त्रों के द्वारा सभी शक्तिपीठों में प्रधान घोषित किया गया है। यह महातीर्थ भारत के उन 51 शक्तिपीठों में प्रथम और अंतिम शक्तिपीठ है जो गंगातट पर स्थित है। कहा जाता है कि जो मनुष्य इस स्थान पर तप करता है, उसे अवश्य सिध्दि प्राप्त होती है। विविध संप्रदाय के उपासकों को मनवांछित फल देने वाली मां विंध्यवासिनी देवी अपने अलौकिक प्रकाश के साथ यहां नित्य विराजमान रहती हैं अतः यही वजह है कि यहाँ साधकों और अन्य उपासकों का हमेशा ताँता लगा रहता है । आदि शक्ति की शाश्वत लीला भूमि मां विंध्यवासिनी के धाम में पूरे वर्ष दर्शनार्थियों का आना-जाना लगा रहता है।

श्रीमद्देवीभागवतके दशम स्कन्ध में कथा आती है :-

सृष्टि रचयिता पितामह ब्रह्माजी ने जब सर्वप्रथम अपने मन से स्वायम्भुव मनु और शतरूपा को उत्पन्न किया। तब विवाह करने के उपरान्त स्वायम्भुव मनु ने अपने हाथों से देवी की मूर्ति बनाकर सौ वर्षो तक कठोर तप किया। उनकी तपस्या से संतुष्ट होकर भगवती ने उन्हें निष्कण्टक राज्य, वंश-वृद्धि एवं परम पद पाने का आशीर्वाद दिया।

मां की पताका (ध्वज) , शारदीय व बासन्त नवरात्र में मां भगवती विंध्यवासिनी नौ दिनों तक मंदिर की छत के ऊपर पताका में ही विराजमान रहती हैं। सोने के इस ध्वज की विशेषता यह है कि यह सूर्य चंद्र पताका के रूप में जाना जाता है। यह ध्वज निशान सिर्फ मां विंध्यवासिनी देवी के पताका में ही है ।

2 – माँ अष्टभुजा मंदिर :

भगवान श्रीकृष्ण की छोटी बहन है मां अष्टभुजा :

मां विंध्यवासिनी मंदिर से दो किलोमीटर दूरी पर मां अष्टभुजा का मंदिर स्थित है। माँ अष्टभुजा के दरबार में भारी संख्या में श्रद्धालु आते है। ऐसी मान्यता है कि पापी कंस ने अपनी मृत्यु के डर से अपनी बहन देवकी को आकाशवाणी होने के बाद कारागार में कैद कर दिया था। जहां कोख से जन्म लेने वाले हर एक बच्चे का वध कर देता था। इसी बीच देवकी की कोख से मां अष्टभुजा जन्म लेती है। कंस जैसे ही वध करने वाला होता है वो उनके हाथों से छूटकर विंध्याचल पहाड़ी पर विराजमान हो जाती है। मां स्वरस्वती रूप में स्थित मां अष्टभुजा के दर्शन के लिए लाखों की संख्या में भीड़ उमड़ती है।

3 – काली खोह :

विंध्याचल धाम में विंध्य पर्वत पर स्थित महाकाली मंदिर का तंत्र साधना के लिए विशेष महत्व है। लोग इस मंदिर को काली खोह के नाम से जानते हैं। विश्व का यह इकलौता मंदिर हैं, जहां पर महाकाली खेचरी मुद्रा में हैं। हाकाली मंदिर को लोग काली खोह के नाम से ज्यादा जानते हैं। इस मंदिर का तंत्र साधना के लिए विशेष महत्व है। काली खोह मंदिर में तंत्र साधना के लिए तांत्रिक नवरात्र की सप्तमी तिथि को मां के सातवें स्वरूप कालरात्रि की साधना करते हैं।

इस मंदिर की सबसे अलग विशेषता है कि मां का मुख यहां पर खेचरी मुद्रा में यानी ऊपर की तरफ है। पुराणों के अनुसार जब रक्तबीज दानव ने स्वर्ग लोक पर कब्जा कर सभी देवताओं को वहां से भगा दिया था। तब ब्रह्मा, विष्णु और महेश सहित अन्य देवताओं की प्रार्थना पर मां विंध्यवासिनी ने महाकाली का ऐसा रूप धारण किया था।

मां के मुंह में प्रसाद का नहीं चलता पता :

रक्तबीज नामक दानव को ब्रह्मा जी का वरदान था कि अगर उसका एक बूंद खून धरती पर गिरेगा तो उससे लाखों दानव पैदा होंगे. इसी दानव के वध हेतु महाकाली ने रक्त पान करने के लिए अपना मुंह खोल दिया जिससे एक बूंद भी खून धरती पर न गिरने पाये. रक्तबीज नामक दानव का वध करने के बाद से मां का एक रूप ऐसा भी है. कहा जाता है इस मुख में चाहे जितना प्रसाद चढ़ा दीजिए कहां जाता है आज तक इसका पता कोई नहीं कर पाया.

तीन रूपों में विराजमान हैं मां :

विंध्य पर्वत पर स्थित मां विंध्यवासिनी का मंदिर देश के 51 शक्तिपीठों में से एक है. यहां पर माता अपने तीन रूप में विराजमान हैं. महालक्ष्मी के रूप में मां विंध्यवासिनी, महाकाली के रूप में मां कालिखोह की देवी और महासरस्वती के रूप में मां अष्टभुजा देवी विराजमान हैं. यही कारण है कि इसे महा शक्तियों का त्रिकोण भी कहा जाता है, जो श्रद्धालु यहां मां से कोई कामना करता है, मां उसे जरूर पूरा करती हैं.

Major tourist attractions in English :

1 – Maa Vindhyavasini Temple:

Between Prayag and Kashi (within Mirzapur city) there is a pilgrimage called Vindhyachal where Maa Vindhyavasini resides. Situated on the banks of Shri Ganga Ji, this Mahatirtha has been declared as the chief among all the Shaktipeeths by the scriptures. This Mahatirtha is the first and the last Shaktipeeth among the 51 Shaktipeeths of India which is situated on the banks of Ganga. It is said that the person who does penance at this place, definitely gets Siddhi. Maa Vindhyavasini Devi, who gives desired fruits to the worshippers of various sects, resides here daily with her supernatural light, hence this is the reason why there is always a continuous stream of seekers and other worshippers here. The eternal play land of Adi Shakti, Maa Vindhyavasini Dham, has visitors throughout the year.

The story is mentioned in the tenth chapter of Shrimad Devi Bhagwat:-

When the creator of the universe, Pitamaha Brahmaji first created Swayambhuva Manu and Shatarupa from his mind. Then after getting married, Swayambhuva Manu made an idol of the goddess with his own hands and did rigorous penance for hundred years. Satisfied with his penance, Bhagwati blessed him with an uninterrupted kingdom, increase in progeny and attainment of the highest position.

Maa’s flag (flag), during Sharadiya and Basant Navratri, Maa Bhagwati Vindhyavasini remains seated in the flag on the roof of the temple for nine days. The specialty of this gold flag is that it is known as Surya Chandra Pataka. This flag symbol is only in the flag of Maa Vindhyavasini Devi.

2 – Maa Ashtabhuja Temple:

Maa Ashtabhuja is the younger sister of Lord Krishna:

Maa Ashtabhuja temple is situated at a distance of two kilometers from Maa Vindhyavasini temple. A large number of devotees visit the court of Maa Ashtabhuja. It is believed that the sinful Kansa, fearing his death, imprisoned his sister Devaki in prison after an Akashvani (voice from the sky). Where he used to kill every child born from her womb. Meanwhile, Maa Ashtabhuja is born from Devaki’s womb. As soon as Kansa is about to kill her, she gets freed from his hands and sits on the Vindhyachal hill. A crowd of lakhs of people gather to see Maa Ashtabhuja situated in the form of Maa Saraswati.

3 – Kali Khoh:

Mahakali temple situated on Vindhya mountain in Vindhyachal Dham has special significance for Tantra Sadhna. People know this temple as Kali Khoh. This is the only temple in the world where Mahakali is in Khechari Mudra. People know Hakali temple more by the name of Kali Khoh. This temple has special importance for Tantra Sadhana. For Tantra Sadhana in Kali Khoh temple, Tantriks do Sadhana of the seventh form of Maa, Kalratri, on the seventh day of Navratri.

The most unique feature of this temple is that the face of Maa is in Khechari Mudra i.e. upwards. According to the Puranas, when Raktbeej demon captured heaven and drove away all the gods from there. Then on the prayers of Brahma, Vishnu and Mahesh and other gods, Maa Vindhyavasini took this form of Mahakali.

Prasad is not detected in Maa’s mouth:

The demon named Raktbeej had a boon from Brahma Ji that if a drop of his blood falls on the earth, then lakhs of demons will be born from it. To kill this demon, Mahakali opened her mouth to drink blood so that not even a drop of blood falls on the earth. After killing the demon named Raktbeej, there is one such form of Maa. It is said that no matter how much prasad is offered in this mouth, no one has been able to find out where it goes till date.

Maa is seated in three forms:

The temple of Maa Vindhyavasini situated on Vindhya mountain is one of the 51 Shaktipeeths of the country. Maa is seated here in her three forms. Maa Vindhyavasini is seated in the form of Mahalakshmi, Maa Kalikhoh ki Devi is seated in the form of Mahakali and Maa Ashtabhuja Devi is seated in the form of Mahasaraswati. This is the reason why it is also called the triangle of great powers, whatever wish the devotee makes to Maa here, Maa definitely fulfills it.

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