Kashi To Vindhyachal Dham-SHOOL TANKESHWAR (काशी से विंध्याचल धाम)

3,520.00

SWIFT DZIRE : INR 3520/-
INNOVA : INR 4870/-
INNOVA CHRISTA : INR 5140/-
ERTIGA : INR 4330/-
CRUISER (NON AC) : INR 5290/-
CRUISER (AC) : INR 6100/-
TRAVELER (17 SEATER) : INR 7550/-
TRAVELER (26 SEATER) : INR 10450/-
BUS (32 Seater 2×2 Push Back) – INR 13350/-
BUS (52 Seater 2×2 Push Back) – INR 19050/-

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प्रमुख दर्शनीय स्थल in Hindi :

1 – माँ विंध्यवासिनी मंदिर :

प्रयाग एवं काशी के मध्य ( मिर्जापुर शहर के अंतर्गत ) विंध्याचल नामक तीर्थ है जहां माँ विंध्यवासिनी निवास करती हैं। श्री गंगा जी के तट पर स्थित यह महातीर्थ शास्त्रों के द्वारा सभी शक्तिपीठों में प्रधान घोषित किया गया है। यह महातीर्थ भारत के उन 51 शक्तिपीठों में प्रथम और अंतिम शक्तिपीठ है जो गंगातट पर स्थित है। कहा जाता है कि जो मनुष्य इस स्थान पर तप करता है, उसे अवश्य सिध्दि प्राप्त होती है। विविध संप्रदाय के उपासकों को मनवांछित फल देने वाली मां विंध्यवासिनी देवी अपने अलौकिक प्रकाश के साथ यहां नित्य विराजमान रहती हैं अतः यही वजह है कि यहाँ साधकों और अन्य उपासकों का हमेशा ताँता लगा रहता है । आदि शक्ति की शाश्वत लीला भूमि मां विंध्यवासिनी के धाम में पूरे वर्ष दर्शनार्थियों का आना-जाना लगा रहता है।

श्रीमद्देवीभागवतके दशम स्कन्ध में कथा आती है :-

सृष्टि रचयिता पितामह ब्रह्माजी ने जब सर्वप्रथम अपने मन से स्वायम्भुव मनु और शतरूपा को उत्पन्न किया। तब विवाह करने के उपरान्त स्वायम्भुव मनु ने अपने हाथों से देवी की मूर्ति बनाकर सौ वर्षो तक कठोर तप किया। उनकी तपस्या से संतुष्ट होकर भगवती ने उन्हें निष्कण्टक राज्य, वंश-वृद्धि एवं परम पद पाने का आशीर्वाद दिया।

मां की पताका (ध्वज) , शारदीय व बासन्त नवरात्र में मां भगवती विंध्यवासिनी नौ दिनों तक मंदिर की छत के ऊपर पताका में ही विराजमान रहती हैं। सोने के इस ध्वज की विशेषता यह है कि यह सूर्य चंद्र पताका के रूप में जाना जाता है। यह ध्वज निशान सिर्फ मां विंध्यवासिनी देवी के पताका में ही है ।

2 – शिव द्वार मंदिर (गुप्त काशी) :

शिवलिंग नहीं साक्षात ‘शिव-पार्वती’ की होती है पूजा :

उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में एक ऐसा शिव मंदिर है जहां पूर्वांचल का हर शिव भक्त सावन में जल चढ़ाने आता है। काशी से ही सटे सोनभद्र जिले में भी भगवान शिव का ऐसा मंदिर है जहां शिवलिंग की नहीं साक्षात शिव-पार्वती की पूजा होती है। पूरे सावन यहां कांवड़ियों का रेला लगा रहता है। भगवान भोलेनाथ का शिवद्वार धाम अनोखा मंदिर है। वैसे उमामहेश्वर की अप्रतिम मूर्ति को लेकर कई मान्यताएं भी हैं। इन्हीं में से एक मान्यता ये है कि जिस भगवान भोलेनाथ की मूर्ति की यहां पूजा की जाती है वह खेत से निकली थी। इसे शिवद्वार धाम के साथ-साथ उमा महेश्वर मंदिर और गुप्त कशी के रूप में भी जाना जाता है।

बहुत ही कम जगह पर भगवान शिव की मूर्ति स्थापित है और अगर भगवान शिव और माता पार्वती दोनों क एक साथ मूर्ति की बात करें तो वो और भी कम जगहों पर देखने को मिलेगी। शिवद्वार धाम की खासियत ही यहीं है कि यहां भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति है और वो भी एक साथ। इस मंदिर के गर्भगृह में देवी पार्वती की 11 वीं सदी की काले पत्थर की मूर्ति रखी हुई है। यह तीन फुट ऊंची मूर्ति सृजन मुद्रा में रखी हुई है जो एक रचनात्मक मुद्रा है।

ये मूर्ति बेहतरीन कलाकारी का एक उदाहरण है। यह मंदिर उस काल के शिल्प कौशल के बेहतरीन नमूने और शानदार कला का प्रदर्शन करता है। यह मंदिर, मौद्रिक मूल्य के संदर्भ में भी बहुत कीमती है। काले रंग की शिव-पार्वती की ये मूर्ति अपने में काफी खास है।

3 – शूल टंकेश्वर महादेव :

काशी का दक्षिण द्वार है शूलटंकेश्वर महादेव मंदिर, भगवान शिव ने यहीं त्रिशूल से रोका था गंगा के वेग को :

शूलटंकेश्वर महादेव मंदिर के पास से गंगा उत्तरवाहिनी होकर काशी में प्रवेश करती हैं। माधव ऋषि ने गंगा अवतरण के पूर्व शिव की आराधना के लिए शिवलिंग की स्थापना की थी। भगवान शिव ने इसी स्थान पर अपने त्रिशूल से गंगा के वेग को रोक कर उनसे वचन लिया था कि वह काशी को स्पर्श करते हुए प्रवाहित होंगी। साथ ही काशी में गंगा स्नान करने वाले किसी भक्त को जलीय जीव से हानि नहीं होगी। गंगा ने जब दोनों वचन स्वीकार कर लिए, तब शिव ने अपना त्रिशूल हटाया। इस जगह को काशी खंड में ‘आनंद वन’ के नाम से जाना जाता था। इसे काशी का दक्षिण द्वार भी कहा जाता है।

मंदिर का इतिहास:

मान्यता है कि गंगा अवतरण के समय भगवान शिव को काशी की सुरक्षा की चिंता सताने लगी। उन्होंने यहीं अपना त्रिशूल गाड़कर गंगा के वेग को रोका था। इसलिए इनका नाम शूलटंकेश्वर पड़ा। द्वापर में ब्रह्मा ने यहां वीरेश्वर महादेव के शिवलिंग की स्थापना की। दक्षिण दिशा में विराजमान शूलटंकेश्वर विपत्तियों से इस नगरी की रक्षा करते हैं। कालांतर में किसी राजघराने की ओर से इसे छोटे मंदिर का रूप दिया गया, जिसे स्थानीय लोगों ने 1980 के दशक में विस्तार दिया।

Major tourist attractions in English :

1 – Maa Vindhyavasini Temple:

Between Prayag and Kashi (within Mirzapur city) there is a pilgrimage called Vindhyachal where Maa Vindhyavasini resides. Situated on the banks of Shri Ganga Ji, this Mahatirtha has been declared as the chief among all the Shaktipeeths by the scriptures. This Mahatirtha is the first and the last Shaktipeeth among the 51 Shaktipeeths of India which is situated on the banks of Ganga. It is said that the person who does penance at this place, definitely gets Siddhi. Maa Vindhyavasini Devi, who gives desired fruits to the worshippers of various sects, resides here daily with her supernatural light, hence this is the reason why there is always a continuous stream of seekers and other worshippers here. The eternal play land of Adi Shakti, Maa Vindhyavasini Dham, has visitors throughout the year.

The story is mentioned in the tenth chapter of Shrimad Devi Bhagwat :-

When the creator of the universe, Pitamaha Brahmaji first created Swayambhuva Manu and Shatarupa from his mind. Then after getting married, Swayambhuva Manu made an idol of the goddess with his own hands and did rigorous penance for hundred years. Satisfied with his penance, Bhagwati blessed him with an uninterrupted kingdom, increase in progeny and attainment of the highest position.

Maa’s flag (flag), during Sharadiya and Basant Navratri, Maa Bhagwati Vindhyavasini remains seated in the flag on the roof of the temple for nine days. The specialty of this gold flag is that it is known as Surya Chandra Pataka. This flag symbol is only in the flag of Maa Vindhyavasini Devi.

2 – Shiv Dwar Mandir (Gupta Kashi):

Not Shivling, but ‘Shiva-Parvati’ is worshipped:

There is a Shiva temple in Sonbhadra district of Uttar Pradesh where every Shiva devotee of Purvanchal comes to offer water in Sawan. There is also a temple of Lord Shiva in Sonbhadra district adjacent to Kashi, where not Shivling, but Shiva-Parvati is worshipped. There is a crowd of Kanwadis here throughout Sawan. Shivdwar Dham of Lord Bholenath is a unique temple. By the way, there are many beliefs about the unique idol of Umamaheshwar. One of these beliefs is that the idol of Lord Bholenath which is worshipped here was found in the field. It is also known as Shivdwar Dham as well as Uma Maheshwar Temple and Gupt Kashi.

The idol of Lord Shiva is installed in very few places and if we talk about the idol of both Lord Shiva and Mother Parvati together, then it will be seen in even fewer places. The specialty of Shivdwar Dham is that there is a statue of Lord Shiva and Goddess Parvati here and that too together. The sanctum sanctorum of this temple houses an 11th century black stone statue of Goddess Parvati. This three feet high statue is kept in the creation posture which is a creative posture.

This statue is an example of excellent artistry. This temple displays the best specimen of craftsmanship and superb art of that period. This temple is also very valuable in terms of monetary value. This black statue of Shiva-Parvati is very special in itself.

3 – Shool Tankeshwar Mahadev:

Shultankeshwar Mahadev Temple is the southern gate of Kashi, Lord Shiva had stopped the speed of Ganga with a trident here:

Ganga enters Kashi through Uttarvahini from near Shooltankeshwar Mahadev Temple. Madhav Rishi had established Shivling for the worship of Shiva before the descent of Ganga. Lord Shiva had stopped the speed of Ganga with his trident at this place and had taken a promise from her that she will flow touching Kashi. Also, any devotee bathing in Ganga in Kashi will not be harmed by aquatic creatures. When Ganga accepted both the promises, Shiva removed his trident. This place was known as ‘Anand Van’ in Kashi Khand. It is also called the South Gate of Kashi.

History of the temple:

It is believed that at the time of Ganga’s descent, Lord Shiva started worrying about the safety of Kashi. He had stopped the speed of Ganga by planting his trident here. Hence, it was named Shooltankeshwar. In Dwapar, Brahma established the Shivling of Veereshwar Mahadev here. Shooltankeshwar, seated in the south, protects this city from calamities. Over time, it was given the form of a small temple by some royal family, which was expanded by the local people in the 1980s.

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